
~ इस उत्पाद ने न केवल पैदावार में सुधार किया, बल्कि जरूरी इनपुट में भी कटौती की, जिससे किसानों की आय और लाभ में उल्लेखनीय बढ़त दर्ज की गई
लखनऊ/मुंबई, 03 मार्च 2022: स्थायित्वपूर्ण कृषि उत्पादों एवं समाधानों के वैश्विक प्रदाता यूपीएल लिमिटेड ने अपनी क्रांतिकारी ज़ेबा तकनीक से महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को सहयोग दिया है। इस तकनीक से ना केवल फसल की पैदावार में सुधार करने एवं बढ़ाने में मदद मिली है बल्कि इससे लागत का खर्च भी कम हुआ है। परिणामस्वरूप, किसानों के मुनाफे और आय में बढ़ोतरी हुई है। गन्ने की खेती के लिये साल 2021 में उत्तर प्रदेश के 10 जिलों और महाराष्ट्र के 5 जिलों के कुल 12500 किसानों ने 25000 एकड़ कृषिभूमि पर ज़ेबा का इस्तेमाल किया था। इसका काफी अच्छा असर देखने को मिला। प्रति एकड़ औसत पैदावार 35-40 टन से बढ़कर 50-80 टन पहुंच गई, मतलब पैदावार में 50% की बढ़ोतरी दर्ज हुई।
पैदावार की उपज बढ़ाने के अलावा ज़ेबा ने पैदावार की संसाधन क्षमता में सुधार किया, जिससे किसानों का खर्च और भी कम हुआ। ज़ेबा के इस्तेमाल से प्रति एकड़ 7 लाख लीटर पानी बचा (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ शुगरकेन रिसर्च, आईआईएसआर लखनऊ का डाटा)। ज़ेबा ने फसल को पोषित करने और पानी देने के अलावा मृदा/फसल के पोषक-तत्वों का इस्तेमाल 25% तक कम किया, जिससे मजदूरी की जरूरत कम हुई। कुल मिलाकर ज़ेबा के इस्तेमाल से यूपी और महाराष्ट्र में गन्ने की खेती के खर्च में प्रति एकड़ 5000 रूपये या 10% की बचत हुई और प्रति एकड़ आय में 20000 रुपये या 15% की बढ़ोतरी देखने को मिली।
भारत में किसान अक्सर फसल की बाधा, खराब पैदावार और खेतों की विफलता जैसी समस्याओं का सामना करते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम प्रभावित होने से किसानों की आशा और भी कम हो रही है और उनका जोखिम बढ़ रहा है। जितने अनुपात में वह पानी, फसल समाधानों और बिजली का इस्तेमाल कर रहे हैं और जमीन पर जितना पैसा खर्च कर रहे हैं, उस अनुपात में उन्हें प्रतिफल नहीं मिल रहा है।
यूपीएल लिमिटेड ने इन समस्याओं को दूर करने के लिये प्राकृतिक रूप से निकाले गए, स्टार्च-आधारित और पूरी तरह से जैव-अपघटनीय (बायो डिग्रेडेबल) उन्नत अवशोषक जे़बा को विकसित किया है। जुताई में प्रयोग के लिये बना ज़ेबा मिट्टी की पानी को रखने की क्षमता बढ़ाता है, फसल की जड़ द्वारा पोषक-तत्वों के उपयोग की क्षमता को सुधारता है और इसका मिट्टी के माइक्रोबियोम पर सकारात्मक प्रभाव होता है, जिससे मिट्टी की सेहत अच्छी रहती है। यह अपने वजन का 400 गुना पानी अवशोषित कर सकता है और फसल की जरूरत के हिसाब से उसे छोड़ सकता है। मिट्टी में छह महीने इसका प्रभाव रहता है और यह मिट्टी में ही प्राकृतिक और अहानिकर रूप से अपघटित हो जाता है। इन गुणों के कारण फसलें कम पानी की खपत करती हैं, खेती में पानी का इस्तेमाल कम होता है और सिंचाई जैसे कामों के लिये कम बिजली के इस्तेमाल की जरूरत पड़ती है। पौधे द्वारा बाद में इस्तेमाल के लिये पोषक-तत्वों के अणुओं का अवशोषण कम अपशिष्ट के कारण प्रति एकड़ खाद का भी कम इस्तेमाल मांगता है।
पुणे का वसंतदादा शुगर इंस्टिट्यूट गन्ने की खेती के क्षेत्र में एक जाना-माना संस्थान है, जिसने तीन वर्षों तक लगातार चले (2018 से 2021) अपने परीक्षण अध्ययन में कंट्रोल प्लॉट्स के सापेक्ष प्रति हेक्टेयर 8.5 मेट्रिक टन ज्यादा उपज पाई है। महात्मा फूले कृषि विद्यापीठ, राहुरी ने इस टेक्नोलॉजी के अपने 2019-20 के विश्लेषण में प्रति हेक्टेयर 12.4 मेट्रिक टन ज्यादा उपज की सूचना दी है।
यूपीएल में इंडिया रीजन के डायरेक्टर आशीष डोभाल ने कहा, “यूपीएल लिमिटेड में हमारा लक्ष्य उन किसानों के कल्याण और समृद्धि को बढ़ावा देना है, जो हमारे महत्वपूर्ण साझीदार हैं। हमारा मिशन है किसानों को ऐसे स्थायित्वपूर्ण उत्पाद देने के लिये नवाचार का उपयोग करना, जो उन्हें न केवल आर्थिक स्थिरता की गारंटी दें, बल्कि पर्यावरण को भी स्थिर रखें। जे़बा की अनूठी और क्रांतिकारी तकनीक ने गन्ने की पैदावार के मामले में स्थिति को पूरी तरह से बदल दिया है। यह उत्पाद किसानों के लिये बहुत फायदेमंद होने के अलावा मिट्टी की गुणवत्ता को भी सुधारता है, जिससे पर्यावरण को भी लाभ होता है।”
वडगांव रासाई, ताल: शिरूर, महाराष्ट्र के किसान भरत तावारे ने कहा, “मेरे गन्ने के खेत में जे़बा के इस्तेमाल से प्रति एकड़ 1200 क्विंटल की पैदावार हुई, जो दूसरे खेत में प्रति एकड़ 650 क्विंटल थी, जहाँ मैंने इस उत्पाद का उपयोग नहीं किया था। इससे पानी की जरूरत कम करने में भी मदद मिली और फसल की गुणवत्ता में सुधार हुआ।”
गांव- जलालपुर, जिला: हरदोई, उत्तर प्रदेश के किसान प्रमोद सिंह ने कहा, “मैंने अपने गन्ने के खेत में 3 एकड़ भूमि में यूपीएल के प्रोन्यूटिवा पैकेज का इस्तेमाल किया। जिस जगह पैकेज का उपयोग हुआ, वहाँ प्रति एकड़ 450 क्विंटल गन्ने की पैदावार हुई, जबकि जिस स्थान पर पैकेज का इस्तेमाल नहीं किया गया, वहाँ केवल 340 क्विंटल गन्ना हुआ। इस प्रकार पैकेज से पैदावार में 32% की बढ़ोतरी हुई।”