नर्चर डॉट फार्म ने देश में पराली जलाने की प्रथा को खत्म करने से संबंधित अब तक के सबसे बड़े प्रोजेक्ट को किया पूरा

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शुरुआती परियोजना की सहायता से 420,000 एकड़ भूमि में आग लगाने की प्रक्रिया की रोकथाम, 1,038,965 टन कार्बन उत्सर्जन को रोका गया, नामांकित खेतों में से 92 प्रतिशत में पराली को जलाने की घटनाओं से बचाव
बंगलौर, 8 दिसंबर, 2021- टिकाऊ और दीर्घकालिक कृषि के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म नर्चर डॉट फार्म ने देश में पराली जलाने की प्रथा को खत्म करने से संबंधित अब तक के सबसे बड़े प्रोजेक्ट क्रॉप रेजिडू प्रोग्राम (सीआरएम) के परिणाम प्रकाशित किए हैं। सीआरएम कार्यक्रम से संबंधित इम्पैक्ट रिपोर्ट में कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, मिट्टी की गुणवत्ता और किसानों की आजीविका में सुधार के साथ-साथ उर्वरकों के कम उपयोग से जुड़े फायदों की चर्चा की गई है।

सीआरएम कार्यक्रम इम्पैक्ट रिपोर्ट में प्रकाशित परिणाम इंगित करते हैं कि नामांकित खेतों में 92 प्रतिशत में पराली को जलाने से बचाव किया गया और लगभग 420,000 एकड़ भूमि को जलने से बचाया गया है, जिसके परिणामस्वरूप 1,038,965 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को जारी होने से रोका जा सका है।

सीआरएम कार्यक्रम के माध्यम से नर्चर डॉट फार्म ने पंजाब और हरियाणा के 23 जिलों में 25,000 से अधिक किसानों को कृषि मशीनीकरण तक पहुंच प्रदान की, और उनकी फसलों के अवशेष को विघटित करने के लिए एक बायो-एंजाइम उपलब्ध कराया। इस दौरान नर्चर डॉट फार्म के 1000 से अधिक फील्ड कर्मियों ने 420,000 एकड़ से अधिक धान के खेतों में 700 से अधिक बूम स्प्रेयरों के साथ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा विकसित बायो-एंजाइम का स्प्रे किया। किसानों का यह सुविधा निशुल्क उपलब्ध कराई गई। जब पराली पर छिड़काव किया जाता है, तो पूसा बायो-डिकम्पोजर एंजाइम 20-25 दिनों में पराली को विघटित कर देता है, जिससे मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ जाता है और इस तरह मिट्टी की समग्र गुणवत्ता कायम रहती है।

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के साथ साझेदारी में धान के खेतों की उपग्रह से निगरानी संबंधी तकनीक का उपयोग उन खेतों की पहचान करने के लिए किया गया था जो 2018-2020 के बीच कम से कम एक बार जलाए गए थे। साथ ही, इस कार्यक्रम के साथ किसानों के जुड़ाव का विश्लेषण करने में भी इसका उपयोग किया गया था। कार्यक्रम की दक्षता और पैमाना सुनिश्चित करने के लिए, नर्चर डॉट फार्म ने किसान कनेक्टिविटी में सुधार और रिजनरेटिव प्रथाओं के बारे में किसानों को शिक्षित करने के लिए तीन मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किए हैं। साथ ही, क्षेत्र का मानचित्रण किया, छिड़काव कार्यक्रम की व्यवस्था की, और मशीन और उपकरण के उपयोग की निगरानी की।

सीआरएम कार्यक्रम से संबंधित इम्पैक्ट रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • जलने से समग्र रूप से बचाव- 92 प्रतिशत एकड़ में नामांकित (पंजाब में 97 प्रतिशत, हरियाणा में 86 प्रतिशत)
  • उत्सर्जन की रोकथाम- 1,038,965 टन कार्बन डाइऑक्साइड, 141,612 टन राख, 42,697 टन कार्बन मोनोऑक्साइड, 2,135 टन पार्टिकुलेट मैटर, 1,423 टन सल्फर डाइऑक्साइड
  • अगले फसल मौसम के लिए उर्वरक के उपयोग और लागत में 20-25 प्रतिशत की कमी
  • अल्पावधि फसलों और उपज में सुधार के माध्यम से किसानों की अतिरिक्त आय में 20 प्रतिशत की वृद्धि
  • 25,000 से अधिक किसानों को पराली जलाने से बचने के तंत्र के बारे में शिक्षित किया गया
    न्यूट्रिशन डॉट फार्म के बिजनेस हेड और सीओओ ध्रुव साहनी ने कहा-

‘‘प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित मामलों में सबसे अधिक समस्या पैदा करने वाले कारणों में से एक है – पराली को आग लगाना, फिर भी इसके विनाशकारी प्रभाव के बावजूद, इसे रोकने के लगभग सभी पिछले प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हुए हैं। लेकिन क्रॉप रेजिडू प्रोग्राम (सीआरएम) एक बड़ी सफलता साबित हुआ है, और हम सीआरएम कार्यक्रम के परिणामों से प्रसन्न हैं, जिसके माध्यम से हमने भारत में स्थायी कृषि के लिए एक व्यवहार्य और वैकल्पिक प्रणाली की स्थापना की है, और टिकाऊ कृषि के लिए एक उज्जवल भविष्य स्थापित किया है।’’

‘‘इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में टैक्नोलॉजी की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है – लक्षित क्षेत्रों की पहचान करने, किसानों को जोड़ने और शिक्षित करने, मशीनीकरण और उपकरणों तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने और एक साझा कृषि-अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हमने टैक्नोलॉजी का बेहतर इस्तेमाल किया है। इसने हमें पूर्व में संचालित किए गए किसी भी प्रोग्राम से 150 गुना बड़े कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संचालित करने में सक्षम बनाया है। चूंकि भारत कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के अपने मार्ग पर चल रहा है, ऐसे में पराली जलाने को खत्म करने के प्रयास हमारी सरकार के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए, और हमें विश्वास है कि सहयोग और ठोस कार्रवाई के माध्यम से, हम पराली जलाने की प्रथा को प्रभावी ढंग से रोक सकते हैं और आने वाले समय में तीन साल के भीतर इसे पूरी तरह खत्म कर सकते हैं। नर्चर डॉट फार्म के लिए अभी यह सिर्फ एक शुरुआत है – और हम किसानों की तरक्की को बढ़ावा देने और टिकाऊ परिणामों को सभी के लिए एक वास्तविकता बनाने के लिए और अधिक प्रभावशाली परियोजनाओं को शुरू करने के लिए तत्पर हैं।’’

आईएआरआई के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने कहा-
‘‘हाल के दौर में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के कारण ऐसे नवीन उपकरण और टैक्नोलॉजी हमारे सामने है, जिनकी सहायता से हम किसानों को फलने-फूलने में मदद कर सकते हैं – पर इसके लिए जरूरी है कि ऐसे समाधानों को कृषक समुदायों के लिए सुलभ और किफायती बनाया जाना चाहिए। हम इस बदलाव की दिशा में काम करने के लिए नर्चर डॉट फार्म के साथ काम करके बहुत खुश हैं और फसलों के अवशेष जलाने की पुरानी परंपरा से बचने के लिए किसानों को एक क्रांतिकारी बायोएंजाइम का उपयोग करने में मदद करते हैं। यह प्रक्रिया उनके खेतों और उनकी आजीविका का समर्थन करती है। इस परियोजना का पूरा होना और इसका व्यापक प्रभाव भारतीय कृषक समुदायों और समाजों, वैश्विक खाद्य प्रणालियों और हमारी धरती की सेहत को कायम रखने की दिशा मेंएक महत्वपूर्ण कदम है।’’

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